आदि शंकराचार्य एवं महाकवि सूरदास की जयंती मनाई गई
लाडनूं। जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में जगत्गुरु आदिशंकराचार्य की जयंती व संत सूरदास जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य प्रोफेसर आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि भक्ति कालीन दार्शनिक पीठिका के अंतर्गत अद्वैतवाद के प्रवर्तक कहे जाने वाले शंकराचार्य मात्र 16 वर्ष की अल्पायु में संपूर्ण वैश्विक ज्ञान को अपने अंदर समाहित करने की अलौकिक क्षमता विकसित कर चुके थे। इस अत्यल्प समय में ही उन्होंने बहुत से शास्त्रों पर शास्त्रार्थ किया एवं ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य, गीताभाष्य, उपनिषद भाष्य आदि का अद्वितीय सृजन किया। शंकराचार्य ने महज 8 वर्ष की बाल्यावस्था में ही गृहत्याग कर सन्यास जीवन व्यवस्था को आत्मसात किया था। उन्होंने बताया कि शंकराचार्य के 5 वर्ष की उम्र में ही तात्कालिक गुरुकुल व्यवस्था में प्रवेश लिया एवं 7 वर्ष की उम्र में संपूर्ण गुरुज्ञान प्राप्त कर लिया। उन्होंने बताया कि शंकराचार्य ने संन्यासी होते हुए भी अपने जीवन में मां के महत्व को सर्वोपरि रखा था। प्रो. त्रिपाठी ने इस अवसर पर केरल के राजा एवं आदि शंकराचार्य के जीवन से जुड़े कुछ रोचक प्रसंग भी साझा किए। इसके साथ ही प्रो. त्रिपाठी ने संत कवि सूरदास जयंती पर बोलते हुए बताया कि प्रतिवर्ष वैशाख मास की शुक्ल पंचमी को मनाई जाने वाली सूरदास जयंती इस बार संयोगवश शंकराचार्य जयंती के साथ ही देशभर में मनाई जा रही है। उन्होंने भक्तिकालीन कृष्ण भक्ति काव्यधारा के अग्रणी संत कवि सूरदास के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए कृष्णभक्ति काव्यधारा एवं उसमें निहित ब्रजभाषा की सरसता को व्यापक अर्थों में शब्दगत करते हुए शुद्धाद्वैतवाद के प्रवर्तक वल्लभाचार्य के शिष्य एवं कृष्णभक्ति काव्यधारा को बहुचर्चित एवं लोकप्रिय बनाने वाले सूरदास की साहित्यिक कृतियों सुरसारावली, सूरसागर एवं साहित्य-लहरी के महत्व को प्रतिपादित किया। कार्यक्रम के संयोजक अभिषेक चारण ने अंत में आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रो. रेखा तिवारी, डॉ. प्रगति भटनागर, डॉ. बलवीर सिंह, अभिषेक शर्मा, तनिष्का शर्मा, घासीलाल शर्मा आदि के साथ समस्त छात्राएं उपस्थित रहीं।