आरएसएस की शाखाओं में अब खुलेगा महिलाओं की एंट्री का रास्ता, मुस्लिमों में बढाया जाएगा सद्भाव,
स्थापना के शताब्दी वर्ष में विभिन्न नए प्रयोगों की तैयारी में संघ
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) 2024 में अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। इसे लेकर संघ तमाम तरह की तैयारियों में जुटा हुआ है। इसी कड़ी में संघ की शाखाओं में ‘परिवार शाखा’ के माध्यम से महिलाओं को भी प्रवेश की अनुमति दी जा सकती है। इसे लेकर संघ के शीर्ष नेतृत्व में विचार-विमर्श चल रहा है। प्रतिनिधि सभा व कार्यकारी मंडल की शीर्ष बैठकों में भी इस पर मंत्रणा हो रही है। संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक, इस अहम बदलाव पर विमर्श ऐसे वक्त में है, जब अपने शताब्दी वर्ष में संघ ने एक लाख स्थानों तक कार्य विस्तार का लक्ष्य तय किया है। इस बैठक के दो अहम एजेंडे हैं, पहला आरएसएस में जल्द से जल्द महिलाओं की एंट्री सुनिश्चित करना। दूसरा, ‘संघ ही समाज’ के मिशन को पूरा करने के लिए प्लान बनाकर उसे अमल में लाना।
सर्वोच्च नीति निर्णायक इकाई की बैठक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की वार्षिक आम बैठक हरियाणा के पानीपत जिले के समालखा में शुरू हो चुकी है। यह बैठक तीन दिन यानी 14 मार्च तक चलेगी। बैठक में सामाजिक प्रकल्पों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाए जाने पर भी चर्चा होगी। साथ ही मुस्लिम समुदाय को भी संगठन से जोड़ने पर मंथन किया जाएगा। इसके अलावा, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा अपने शताब्दी वर्ष विस्तार योजना के तहत 2022-23 में कार्यों की समीक्षा करेगा और अगले साल का लक्ष्य निर्धारित करेगा। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा संघ की सर्वोच्च नीति निर्णायक इकाई है। संघ की प्रतिनिधि सभा संघ की फैसला लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। इसकी बैठक हर साल मार्च में होती है। प्रतिनिधि सभा में संघ के कामकाज की समीक्षा की जाती है। संघ से जुड़े संगठन, जिन्हें संघ का अनुषांगिक संगठनों के प्रतिनिधि भी इस बैठक में मौजूद होते हैं। हर संगठन को तीन से चार मिनट का वक्त दिया जाता है। बैठक में अलग-अलग प्रांतों में संघ का काम कैसा चल रहा है, उस पर बात होती है और भविष्य के लिए लक्ष्य तय किए जाते हैं। इस सभा में कुछ प्रस्ताव भी पास होते हैं। आम तौर पर ये प्रस्ताव सामाजिक और राजनीतिक होते हैं।
स्थापना के सौ साल पर होंगे विभिन्न प्रयास
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साल 2025 में अपनी स्थापना के 100 साल पूरे करने जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, पंजाब में पिछले कुछ महीनों में जो हालात बने हैं, खासकर खालिस्तान समर्थकों के बवाल और अस्थिरता पैदा करने की कोशिश किए जाने पर तनाव बढ़ा है, इस संबंध में बैठक में चर्चा होगी। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत देशभर से 34 संगठनों के 1474 प्रतिनिधि शामिल हुए हैं। तीन दिनों तक विश्व हिंदू परिषद समेत संघ से जुड़े 34 संगठनों के पदाधिकारी भी इसमें भाग लेंगे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बी एल संतोष भी शामिल होने पहुंचे हैं। इस बैठक में क्षेत्र और प्रांत प्रचारकों के काम की भी समीक्षा की जाती है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस साल चुनाव हैं, ऐसे में यहां मौजूद क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्पुते को नई जिम्मेदारी मिल सकती है। दीपक विस्पुते 5 साल पहले क्षेत्र प्रचारक बनकर मध्य प्रदेश आए थे। सूत्रों के मुताबिक बीते दिनों संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तर प्रदेश के ठश्रच् प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चैधरी की बैठक भी हुई थी। उसमें संगठन में बदलाव के प्रस्ताव आए थे, इस बैठक में उन प्रस्तावों पर मुहर लग सकती है।
बनाया जाएगा देश में सामाजिक सद्भाव का माहौल
यह प्रतिनिधि सभा कई सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर भी चर्चा करेगी। खासकर देश में सामाजिक सद्भाव का माहौल कैसे बनाया जाए और नागरिकों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने जैसे विषय भी इसमें शामिल हैं। आरएसएस के मीडिया संबंधों के प्रमुख सुनील आंबेकर के मुताबिक, आरएसएस की शाखाएं वास्तव में समाज में बदलाव लाने के केंद्र हैं और वे स्वयंसेवकों द्वारा किए गए समाज के अध्ययन के आधार पर अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में इसके लिए काम करती हैं। इस बैठक में पिछले कुछ वर्षों में स्वयंसेवकों द्वारा किए गए अध्ययनों और उनके आधार पर किए गए कार्यों पर चर्चा होगी।
68 हजार स्थानों पर लगती हैं शाखाएं
आरएसएस पदाधिकारियों के अनुसार, संघ देश भर में 71,355 स्थानों पर मौजूद है। देश में 42 हजार 613 स्थानों पर लगती थी, जो बढ कर 68 हजार 651 दैनिक शाखाएं चल रही हैं। 26 हजार 877 साप्ताहिक बैठकें होती हैं। 10 हजार 412 संघ मंडली हैं। 2020 की तुलना में 6 हजार 160 शाखाएं बढ़ी हैं। हर सप्ताह संघ की 26,877 बैठकें होती हैं। साप्ताहिक बैठकें 32 प्रतिशत बढ़कर 6,543 बढ गई। संघ मंडली में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आरएसएस की 10,412 संघ मंडली है। आरएसएस के शताब्दी वर्ष तक संघ देश के हर ब्लॉक स्तर तक पहुंचने की योजना बना रहा है। कुल 1 लाख शाखाओं का संचालन किए जाने की योजना है। सन् 1936 में ही राष्ट्र सेविका समिति का गठन कर दिया गया था। इसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं। इस समय लगभग 10 लाख बहनें इससे जुड़ी हैं और देश के सभी प्रांतों में इसकी शाखाएं चलती हैं। अकेले राजधानी दिल्ली में ही लगभग 70 महिला शाखाएं राष्ट्र सेविका समिति चलाती है। दिल्ली के साथ-साथ देश के बड़े महानगरों में भी सप्ताह और महीने में परिवार शाखाएं लगती रही है, जिसमें सभी सदस्य हिस्सा लेते है। राष्ट्र सेविका समिति के द्वारा महिलाओं के लिए अलग से शाखा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। संघ महिलाओं की शाखाओं को बढ़ाने के लिए भी विचार कर रहा है। महिला शाखा को दो गुना तक किए जाने का प्रस्ताव है। इसके लिए राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से एक अलग अभियान संचालित किया जाएगा।
महिलाओं को भी जोड़ा जाएगा शाखाओं से
मौजूदा समय में देशभर में करीब 75 हजार स्थानों पर संघ का विस्तार है। आरएसएस पुरुषों के बीच कार्य करता है, जबकि महिलाओं के लिए पृथक संगठन राष्ट्र-सेविका समिति है, जिसकी गतिविधियां बालिकाओं, युवतियों और महिलाओं के बीच हैं। आरएसएस के संयुक्त महासचिव डॉ. मनमोहन वैद्य ने बताया कि महिलाओं को ‘शाखाओं’ से जोड़ने पर बैठक में चर्चा होगी। 2025 में संघ 100 साल का हो रहा है, विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले या फिर 2025 के शुरूआती महीने में महिलाओं के लिए अलग संगठन या उनकी आरएसएस में एंट्री का ऐलान किया जा सकता है। हालांकि, दुर्गा वाहिनी के नाम से आरएसएस की महिला शाखा है, लेकिन अब संघ में महिलाओं की अलग शाखाएं लगाने का फैसला इसी बैठक में लिया जा सकता है।
मनमोहन वैद्य ने पहले दिन दिए संकेत- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामाजिक कार्यों में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है। महिला सशक्तीकरण, परिवार कल्याण, लैंगिक भेदभाव उन्मूलन के प्रति जागरूकता, सांस्कृतिक कार्यों के प्रति परिवारों में जागरूकता, पर्यावरण संवर्धन और समाज के विभिन्न वर्गों में आपसी सामंजस्य बढ़ाने के उद्देश्य से संगठन द्वारा जारी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में महिला स्वयंसेवकों को ज्यादा सशक्त भूमिका सौंपी जा सकती है। ये कार्यक्रम आरएसएस की महिला विंग राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से संचालित किए जा सकते हैं। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के जॉइंट सेक्रेटरी डॉ. मनमोहन वैद्य ने 12 मार्च को महिलाओं की संगठन में एंट्री को लेकर संकेत भी दिए। उन्होंने कहा- ‘इस बैठक में महिलाओं को शाखा से जोड़ने पर विचार किया जा रहा है।’ सूत्रों के मुताबिक, महिलाओं की शाखाएं अलग होंगी या संगठन ही अलग होगा, इस पर विचार चल रहा है। अभी आरएसएस में महिलाओं के लिए राष्ट्रसेविका समिति नाम से संगठन है। महिलाएं प्रचारक या किसी विभाग में पदाधिकारी नहीं हैं। मनमोहन वैद्य ने कहा कि आरएसएस में महिलाओं की एंट्री को लेकर पहले भी विमर्श चलता रहा है। 2024 में संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है, ऐसे में कई बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।
अमेरिका में भी है प्रचलित– संघ की स्थापना वर्ष 1925 में हुई थी, तब से यही परंपरा चली आ रही है। हालांकि, इसे लेकर कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जैसे नेता अक्सर सवाल भी खड़े करते रहते हैं। वैसे, अमेरिका जैसे देशों में परिवार शाखा प्रचलित है, क्योंकि वहां परिवार के सदस्य अपने कार्यों की वजह से दूर-दूर रहते हैं।
देश के महानगरों में बन रही महिलाओं को जोड़ने की स्थिति– ऐसे में वहां सप्ताह और महीने में परिवार शाखाएं लगती हैं, जिसमें परिवार के सभी सदस्य भाग लेते हैं। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक, दिल्ली समेत देश के अन्य महानगरों में भी कुछ-कुछ इस तरह की स्थिति बन रही है। बदलती परिस्थितियों में अब इसे संघ में औपचारिक रूप से आजमाने पर विमर्श तेज है। ऐसे में उम्मीद है कि एक-दो वर्ष में यह प्रयोग शुरू हो जाए और संघ के ध्वज तले परिवार शाखाओं में महिलाओं का भी जुटान होने लगे। भले ही इसमें पुरुषों व महिलाओं की गतिविधियां अलग-अलग हों। उनके मुताबिक परिवार शाखाएं प्रति सप्ताह या महीने में एक बार लगाई जाएंगी। कोरोना महामारी के दौरान लोकडाउन में जब प्रत्यक्ष शाखा की गतिविधियां नहीं हो रही थीं, तब भी परिवार शाखाएं प्रयोग में आई थीं।
मुस्लिमों को लेकर भ्रम और भ्रांतियां दूर करेगा संघ
तीसरी बैठक में मुस्लिम संगठनों और आरएसएस नेताओं की बीच देश के कई मुद्दों पर चर्चा हुई। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के सहयोग से समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख लोगों से संवाद बढ़ाए जाने पर बातचीत होगी। आरएसस के प्रति जो भ्रम और भ्रांतियां हैं, उनको दूर किया जाएगा और राष्ट्र-समाज के लिए एक साथ आगे आकर काम करने पर समन्वय पर चर्चा होगी। इस बारे में रिपोर्टिंग होगी और फिर चर्चा भी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैदराबाद और नई दिल्ली में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक स्पष्ट कह चुके हैं कि पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा संपर्क करना चाहिए। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच उम्मीद से थोड़ा कम खरा उतरा है। हालांकि मुस्लिमों को जोड़ना संघ के लिए चुनौती भरा है। इसलिए मंच से जितना काम हुआ उसे भी सकारात्मक ही माना जा रहा है। लेकिन आगे के लिए क्या रणनीति हो ताकि देश का बौद्धिक तबका संघ को मुस्लिम विरोधी न मानें। इस पर गंभीर मंथन किया जाएगा। दो साल पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत का दोनों समुदाय का डीएनए एक होने का बयान लगातार प्रचारित किया गया। यह बयान रणनीति का एक शुरुआती हिस्सा माना जा सकता है। संघ मुस्लिमों के खिलाफ होने की इमेज को तोड़ना तो नहीं, पर इसे बदलना जरूर चाहता है।
पसमांदा मुस्लिमों को लेकर क्या है मोदी ने- इसी साल जनवरी में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी नेताओं को नसीहत दी और कहा- मुस्लिमों को लेकर गलत बयानबाजी ना करें. मोदी ने कार्यकर्ताओं से पसमांदा मुसलमानों, बोहरा मुस्लिमों तक पहुंच बनाने के लिए कहा. पीएम ने कहा कि कोई हमें वोट दे या ना दें, लेकिन सबसे संपर्क बनाएं। पीएम मोदी ने पहली बार पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने पर जोर नहीं दिया, बल्कि गुजरात में सीएम पद पर रहते हुए ही उन्होंने मुस्लिम वोटबैंक के बीच अपनी पैठ जमाने की कोशिश शुरू कर दी थी। उन्होंने पूरे मुस्लिम समाज को जोड़ने के बजाय पसमांदा और बोहरा मुस्लिमों पर फोकस किया था। इस रणनीति में बीजेपी को गुजरात में फायदा भी हुआ था और सीएम से पीएम बनकर दिल्ली आए, तो भी मोदी ने मुसलमानों को इसी तबके को साथ लेने पर जोर देते रहे।
समाज को संघ और संघ को समाज में घोलने की तैयारी
आरएसएस की काम करने की शैली समाजसेवा से शुरू होती है। आदिवासी समाज में वनवासी कल्याण समिति हों या फिर एकल विद्यालय, ये सब उसके ही उदाहरण हैं। नॉर्थ ईस्ट में लोगों के लिए मेडिकल सुविधा से लेकर शिक्षा तक संघ ने कई इंस्टीट्यूशन खड़े किए। अब समाज में संघ को घोलने की बात है। इसमें संघ समाज के सिस्टम का अहम हिस्सा बनने की तैयारी में है। संघ अब तक सेवा की भूमिका में था। शिक्षित कर लोगों के जीवन स्तर को उठाने का काम तो हम पहले से ही कर रहे हैं। अब लोगों को हुनरमंद बनाकर उन्हें कमाई का जरिया देने के मॉडल पर बात होगी। बैठक स्थल के समालखा गांव से ही उसकी शुरुआत होगी। यहां सेवा साधना ग्राम केंद्र बनकर तैयार हो चुका है। यहां एक स्किल सेंटर की तरह काम करेगा। आसपास के गांवों के लोगों को इसमें दाखिला देकर उन्हें स्किल्ड किया जाएगा। यही मॉडल अब हर राज्य में लागू करने के लिए 2024 के चुनाव से पहले की डेडलाइन फिलहाल तय की गई है।
इसके अलावा हर समुदाय की धार्मिक आस्था के हिसाब से उससे संवाद बढ़ाना और उनके कार्यक्रमों में शामिल होना। हालांकि संघ ने आदिवासी समाज के भीतर इसी तरह से पैठ बनाई है। उनके देवताओं और आस्था के केंद्र को लेकर कार्यक्रमों का आयोजन और फिर उनके धर्म को सम्मान देकर उन्हें जोड़ना। इस प्रक्रिया को और तेज किया जाएगा।