‘ईमानदारी कभी मर नहीं सकती’, रैकी चिकित्सक डॉ. कमल सोनी ने सोने की अंगूठी लौटा कर साबित किया कि कायम है ईमानदारी

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‘ईमानदारी कभी मर नहीं सकती’,

रैकी चिकित्सक डॉ. कमल सोनी ने सोने की अंगूठी लौटा कर साबित किया कि कायम है ईमानदारी

लाडनूं (kalamkala.in)। ईमानदारी कभी मर नहीं सकती, हर ज़माने में किसी न किसी के भीतर ज़मीर जिंदा अवश्य रहता है। हाल ही में यहां नाइयों का बास में एक व्यक्ति को उसकी खोई हुई सोने की अंगूठी को उसका पता लगाकर सौंप दी गई। यह सब यहां की भावना संस्था परिवार के संचालक व रैकी चिकित्सक डॉ. कमल सोनी की ईमानदारी की वजह से हुआ। गौरतलब है कि भावना संस्था परिवार ने लाडनूं में लम्बे समय से एक अभियान चला रखा है। इस अभियान में उन्होंने लाडनूं के हर मंदिर में एक बोक्स और एक बैनर लगा रखा है, जिसमें देवी-देवताओं, धार्मिक चिह्न आदि की तस्वीरों, खंडित मूर्तियों, अन्य अनुपयोगी धार्मिक सामग्री को वहां रखने की अपील होती है। इस सभी सामग्री को डा. कमल सोनी अपनी टीम के साथ एकत्रित करके उनका धार्मिक विधान पूर्वक डिस्पोजल किया जाता है। अपने इस कार्यक्रम के तहत डॉ. कमल सोनी नाइयों का बास स्थित सैनजी मंदिर पहुंचे और वहां रखी गई सामग्री को संग्रहित करते समय उन्हें वहां भूल से डाल दी गई एक सोने की अंगूठी मिली। यह अंगूठी करीब 35 हजार की कीमत की थी। उन्होंने उस अंगूठी के मालिक का पता लगाया और उनको वह अंगूठी लौटा दी। वह अंगूठी मनीष सैन की थी, जो उसने भूलवश सामान डालने के वक्त उनके साथ ही सैन मंदिर में रखे पात्र में चली गई थी। असली मालिक को वह अंगूठी लौटाई जाने पर मालिक मनीष सैन ने अपनी इच्छा से भावना संस्था परिवार को सहयोग करते हुए 2100 रुपये की राशि भावना संस्था परिवार को प्रदान की और भावना संस्था परिवार को भविष्य में नियमित सहयोग देने का विश्वास दिलाया। इस तरह ईमानदारी के जिंदा होने का सबूत सामने आया।

लाडनूं में ऐसे बहुत हैं उदाहरण 

यहां उल्लेखनीय है कि लाडनूं में यह कोई पहला मामला सामने नहीं आया है। यहां कभी बटुआ, कभी बैग, कभी रुपए, कभी अन्य सामान लौटाने के अनेक उदाहरण समय-समय पर सामने आते रहते हैं। लाडनूं की वरिष्ठ पार्षद सुमित्रा आर्य को काफी पहले बस स्टैंड सुखदेव आश्रम के सामने सफाई करवाते वक्त एक सोने की चैन मिली थी। उन्होंने इस बारे में काफी लोगों को सूचित किया कि किसी की सोने की चैन गुम हुई हो तो बताएं और पहचान बता कर ले जाए। इस पर काफी महिला-पुरुष उनके पास चैन अपनी बताते हुए आए, लेकिन एक भी उस चैन की सही पहचान नहीं बता पाया। फिर एक व्यक्ति, जो ऑटो रिक्शा चालक था, ने उसे अपनी चैन बताई और कहा कि इस चैन के कारण उसकी पत्नी छोड़ कर पीहर जा बैठी। उससे पहचान पूछी गई तो वह भी बता नहीं पाया। फिर वह दो दिन बाद वापस लौटा और बोला कि वह अपनी पत्नी को पूछ कर आया है। उसने आकर सही-सही पहचान बता दी। पूर्व पालिकाध्यक्ष होशियार अली खां, पूर्व पार्षद मोती खां वगैरह मौजीज लोगों की उपस्थिति में एक लिखित में प्राप्तकर्ता सहित सबके हस्ताक्षर करवा कर वह सोने की चैन पार्षद सुमित्रा आर्य ने उसके असली मालिक को सुपुर्द की थी।

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Author: kalamkala

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