अनुशासन और मर्यादाओं के लिए शिक्षार्थियों को राम से प्रेरणा लेनी चाहिए- प्रो. जैन
लाडनूं। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में रामनवमी के पर्व पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम का जन्मदिवस होने से रामनवमी का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष नवमी को मनाया जाता है। इससे पूर्व नौ दिनों तक लोग फलहारी व्रत या एक समय भोजन का व्रत धारण व पालन करते हैं। इस उपासना से व्यक्ति के शारीरिक रोगों व मानसिक विकारों से छुटकारा मिलने के अलावा इससे सांवेगिक संतुलन बढता है, नैतिक एवं चारित्रिक गुणों की प्रबलता होती है, सामाजिक सौहार्द, सद्भावना व सहयोग की भावना का विकास होना संभव होता है। भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। उनका जीवन पूरी तरह से अनुशासित और मर्यादित रहा था, इसलिए ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई’ उक्तियां प्रारम्भ हुई। उन्होंने आज भी शिक्षा में अनुशासन और मर्यादाओं के लिए शिक्षार्थियों को रामायण व अन्य संबंधित कृतियों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया तथा कहा कि समाज में बढ़ रहे वैमनस्य, द्वेष, ईष्र्या, मूल्यहीनता आदि को मिटाने के लिए भगवान श्रीराम के व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रमुख विचारों से युवा पीढ़ी को ओतप्रोत करना चाहिए। रामनवमी पर स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में इसे बड़े स्तर पर आयोजन किया जाना चाहिए। इस पर्व की मानवता के कल्याण, विकास और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका हा सकती है। कार्यक्रम में डॉ.विष्णु कुमार, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. अमिता जैन, डॉ. आभा सिंह, डॉ. गिरधारीलाल शर्मा, खुशाल जांगिड, डॉ. सरोज रॉय, डॉ. मनीष भटनागर, प्रमोद ओला आदि संकाय सदस्य एवं शिक्षा विभाग की बी.ए.-बी.एड एवं बी.एस.सी-बी.एड की छात्राध्यपिका उपस्थित रही।