विश्व की 25वीं एवं भारत की तीसरी समृद्ध भाषा राजस्थानी को मान्यता दिलाने मे सहयोग की मांग,
मुरारी बापू से की गई राजस्थानी भाषा की मान्यता की गुहार,
वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मणदान कविया का नाथद्वारा मे हुआ सम्मान
मूण्डवा (रिपोर्टर लाडमोहम्मद खोखर)। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के संस्थापक, अन्तरर्राष्ट्रीय मुख्य संगठक व राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मणदान कविया ने नाथद्वारा में प्रसिद्ध रामकथा वाचक श्रद्धेय मुरारीबापू से सायंकालीन मुलाकात में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने में सहयोग एवं आशीर्वाद देने की गुहार लगायी।
कद्दावर नेता के अभाव में राजस्थानी पिछड़ी
कविया नें ज्ञापन में लिखा कि राजस्थान प्रदेश की प्रतीक, विश्व के 16 करोड़ नागरिकों की मातृभाषा राजस्थानी गुजराती की अग्रजा है। देश आजाद होने पर महात्मा गांधी व सरदार पटेल जैसे दिग्गज नेताओं के नेतृत्व के कारण गुजराती को संवैधानिक मान्यता मिल गई, लेकिन दुर्भाग्यवश राजस्थान में कद्दावर नेता के अभाव के कारण सर्वसमर्थ होते हुए भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली। हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के हित में राजस्थान प्रदेश की भाषा हिन्दी स्वीकार कर ली गई। दुष्परिणाम स्वरूप आजादी के 75 वर्षों के बाद भी राजस्थानी को मान्यता के लिए तरसना पड़ रहा है। पिछले 70-80 वर्षों से राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग बराबर चली आ रही है, लेकिन राज्याश्रय के अभाव में इस विश्व की 25वीं एवं भारत की तीसरी समृद्ध भाषा राजस्थानी को मान्यता के लिए केन्द्र सरकार के मुंह की ओर ताकना पड़ रहा है।
विधानसभा से संकल्प भी भेजा
कविया ने लिखा कि हालांकि, राजस्थान सरकार ने 25 अगस्त 2003 को राजस्थान विधानसभा में सर्वसम्मति से राजस्थानी भाषा की मान्यता का संकल्प पारित कर केन्द्र सरकार को भेज दिया था। प्रदेश के सांसद की उदासीनता के कारण इस मुद्दे पर संसद में दबाव नहीं बन पा रहा है। कविया ने बापू से आग्रहपूर्वक अनुरोध किया कि सत्ता में निराजित शीर्षस्थ नेता आपके कृपापात्र एवं कृपा कांसी हैं. इसलिए उन्हें गुजराती की बड़ी बहन राजस्थानी भाषा को यथाशीघ्र संवैधानिक मान्यता दिलवाने का श्रेय एवं प्रेय कार्य करने के लिए सलाह दी। राजस्थान प्रदेश की जनता उनके इस ऋण को कभी नहीं भूलेगी एवं आप मातृभाषा के सम्मान से स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेगी। इस अवसर पर कविया के साथ अमरसिंह आशिया, सूरतसिंह सान्दू, भैरूसिंह सांदू, नेनेश जानी, जीतेन्द्र गुप्ता, कान्तिलाल परमेश्वर प्रजापत, जगदीश, मनु मेघवाल, राजसिंह राठौड, जोगाराम पटेल, प्रभुराम चैधरी आदि राजस्थान हित चिंतक उपस्थित रहे। इस अवसर पर कविया ने स्वरचित राजस्थान साहित्य की एक दर्जन काव्य कृतियां बापू को भेंट की।
