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ठेठ राजस्थानी भाषा को नई पहचान देने वाले प्रख्यात काव्यकार श्रीनिवास तिवाड़ी का देहावसान, साहित्यकारों ने बताई राजस्थानी भाषा के लिए अपूरणीय क्षति

ठेठ राजस्थानी भाषा को नई पहचान देने वाले प्रख्यात काव्यकार श्रीनिवास तिवाड़ी का देहावसान,

साहित्यकारों ने बताई राजस्थानी भाषा के लिए अपूरणीय क्षति

लाडनूं। राजस्थानी भाषा के जाने-माने प्रख्यात वयोवृद्ध कवि श्रीनिवास तिवाड़ी का शनिवार को सुबह निधन हो गया। वे जोधपुर में रह रहे थे। 76 वर्षीय श्रीनिवास तिवाड़ी लाडनूं वासी सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं साहित्यकार रामकुमार तिवाड़ी के भाई थे। तिवाड़ी मूलतः नागौर जिले के रोल ग्राम के निवासी थे। वे काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे। कुछ समय पहले लाडनूं में उनका सम्मान क्षेत्र के साहित्यकारों एवं शासन-प्रशासन के प्रमुख लोगों द्वारा किया गया था। इस अवसर पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध राजस्थानी रचनाओं का पाठ भी किया था। उनकी रचना ‘धरती रो भगवान’ को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया जाने वाला था।

साहित्य अकदमी और अन्य पुरस्कारों से हुए थे सम्मानित

राजस्थानी साहित्य अकादमी से पुरस्कार प्राप्त राजस्थानी भाषा क़े कवि व लेखक श्रीनिवास तिवाड़ी ने राजस्थानी भाषा में समृद्ध काव्य सृजन किया और आजीवन राजस्थानी भाषा के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करते हुए इसकी मान्यता के लिए संघर्षरत रहे। उनकी लिखी पुस्तकों में ‘मन में ही रेगी’, ‘मरुधर री माटी’, ‘तिणकला’, ‘मन री निकळगी’, ‘आओ पिया द्वारिका नगरी’ आदि प्रमुख हैं। इनकी आत्मकथा ‘आप आप रा भाग’ काफी लोकप्रिय हुई। इसका हाल ही में कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। तिवाड़ी को समय-समय पर शासन-प्रशासन एवं विभिन्न साहित्य अकादमियों व साहित्य प्रेमी संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया जाता रहा था। राजस्थानी भाषा में उनकी लिखी हुई बहुत सी रचनाएं सोशल मीडिया पर भी वायरल रहती हैं। उनकी कविता ‘ईंया रोटी झलावे’ को सर्वश्रेष्ठ राजस्थानी कविता का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। उनकी रचना ‘धरती रो भगवान’ को पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी चर्चा हो रही है।

पुजारी रहते हुए किया काव्य-सृजन

उन्होंने अपना अधिकांश काव्य-सृजन स्वांगिया माता मंदिर, झींपासनी में पुजारी रहते हुए किया था। ऐसे मूर्धन्य साहित्यकार के निधन को क्षेत्र के साहित्यकारों और साहित्य-प्रेमियों ने राजस्थानी भाषा के लिए अपूरणीय क्षति बताई है। उनके निधन की खबर के साथ ही यहां शोक की लहार छा गयी।

kalamkala
Author: kalamkala

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