लाडनूं नगर पालिका के अजब हाल, इस मतीरों के भारे को बांध कर रखने में विधायक असफल क्यों हुए?
कांग्रेस शासित नगर पालिका में अपने ही चुने चैयरमेन का विरोध करने में उतरे कांग्रेस के पार्षद, कभी करते हैं निंदा प्रस्ताव की चर्चा, कभी जड़ते हैं ताले, लगाते हैं ‘मुर्दाबाद’ के नारे, चैयरमेन और वायस चैयरमेन हुए आमने-सामने
लाडनूं (kalamkala.in)। पिछले कुछ समय से नगर पालिका लाडनूं में एक अजीब सा नजारा देखने को मिल रहा है। नगर पालिका कांग्रेस शासित है, कांग्रेस के ही पार्षद कांग्रेस वाले अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। कांग्रेस के उपाध्यक्ष मुकेश खींची ने अगुवाई करते हुए पालिकाध्यक्ष के खिलाफ अपनी बांहें टांग रखी हैं और कांग्रेसियों के साथ भाजपाई पार्षद भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। पिछले दिनों रविवार को नगर पालिका सभागार में मुकेश खींची ने अपनी अध्यक्षता में पार्षदों की एक बैठक रखी, जिसमें कांग्रेस ही नहीं, बल्कि भाजपा के पार्षद भी सम्मिलित हुए। इसमें पालिकाध्यक्ष रावत खां और ईओ जितेन्द्र कुमार मीणा के विरूद्ध निन्दा प्रस्ताव तक लेने की चर्चाएं हुई। इसके बाद कांग्रेस व भाजपा पार्षदों ने मिलकर जिला कलेक्टर कार्यालय तक की यात्रा कर ली। अब भी लगातार सोशल मीडिया हो या शिकायतों का दोर सबसे आगे कांग्रेस के पार्षद ही कवायद कर रहे हैं।
नगर पालिका कार्यालय का दरवाजा बंद कर नारेबाजी की
हाल ही में सोमवार को ही कांग्रेस व भाजपा के पार्षद मिल कर नगर पालिका पहुंचे और वहां मौजूद ईओ जितेन्द्र कुमार मीणा से सफाई और रोशनी की बात की। परस्पर बातचीत करने के बाद ईओ यहां एसडीएम आॅफिस में किसी बैठक के लिए निकल गए। पीछे से गुस्साए हुए पालिका उपाध्यक्ष बाहर आए और नगर पालिका के मुख्य द्वार को खींच कर बंद कर दिया, जब पार्षद अंदर रह गए तो उनके लिए वापस दरवाजा खोला गया और सबके बाहर आने पर बंद करके सामने खड़े होकर मुर्दाबाद के नारे जम कर लगाए। बड़ी देर तक नारे लगाने के बाद पालिकाकर्मियों के बाहर निकलने के लिए दरवाजे को वापस खोला गया। बहुत आश्चर्य है कि इस नारेबाजी में भाग लेने वाले कांग्रेस के उपाध्यक्ष मुकेश खींची, पार्षद मुनसब खां, नौशाद अली सिसोदिया, हाजी सतार खां, इरफान, नदीम, असफाक, वसीम, बिदाम बोपारी आदि मौजूद रहे। इनके साथ भाजपा के शहर अध्यक्ष व पार्षद मुरलीधर सोनी, ओमप्रकाश सिंह मोहिल, बाबूलाल प्रजापत तथा कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए संदीप प्रजापत आदि मौजूद रहे।
पार्षदों की फूट को कंट्रोल करने में कांग्रेस असफल हुई
नगर पालिका मंडल में कांग्रेस से जीते हुए पार्षदों के बीच ही धड़ेबंदी देखने को मिल रही है। ऐसा नहीं है कि सारे कांग्रेसी पार्षद पालिकाध्यक्ष के विरोध में खड़े हों, उनके समर्थक भी काफी हैं। लेकिन, विरोधी जितने मुखर हैं, उनके समर्थक उतने ही चुप बैठे हैं। कांग्र्रेस संगठन में जन प्रतिनिधियों के बीच हो रही इस सिर फुटोव्वल का कोई इलाज तक नहीं किया जा रहा है, यह काफी आश्चर्यजनक है। यहां विधायक कांग्रेस का है और नगर पालिका में कांग्रेस का बोर्ड बनाने का श्रेय भी उन्हीं को है, परन्तु अपने ही बनाए बोर्ड को बिखरते देख कर भी वे चुप्पी धारे क्यों बैठे हैं, यह आश्चर्यजनक लग रहा है। लगता है नगर पालिका कांग्रेस के लिए मतीरों का भारा हो गया, जो जितना भी बांधने की कोशिश की जाए, उतना ही बिखरता है। कभी कोई मतीरा कहीं गुड़क जाता है, उसे पास लाया जाता है तो दूसरा कोई गुड़कने लगता है। नगर पालिका का एक-एक पार्षद अपने पीछे 700 से 2000 व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। विधायक उनमें से किसी की भी उपेक्षा नहीं कर सकते, लेकिन सबको साथ मिला कर संगठित रूप से चलाने की जिम्मेदारी का निर्वहन तो उनको करना ही होगा। पार्षद कुछ भी करे, लोगों की अंगुलियां तो विधायक की तरफ ही उठेंगी।