अनित्य संसार में नित्य को पाने अर्थात् आत्म-कल्याण के लिए धर्म की दिशा में बढें- आचार्यश्री महाश्रमण,
छापर में चातुर्मास सम्पन्न कर देवाणी पहुंचे आचार्यश्री महाश्रमण,
एक दिन सुजानगढ प्रवास के बाद 11 नवम्बर को तेरापंथ की राजधानी लाडनूं में मंगल प्रवेश
देवाणी (चूरू)। तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मधरा छापर में वर्ष 2022 का चातुर्मास सम्पन्न कर बुधवार को तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रातः 7.21 बजे लगभग चातुर्मास प्रवास स्थल से प्रस्थान किया। इस अवसर पर सैंकड़ों छापरवासी उनकी विदाई की वेला में शामिल हुए। सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए वे गतिमान हो गए। उनके पीछे-पीछे छापर की जनता भी चल पड़ी। आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ करीब पांच किलोमीटर का विहार कर देवाणी स्थित हुलासचंद भंवरीदेवी भंसाली चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित कॉलेज परिसर में पधारे। भावविभोर भंसाली परिवार के सदस्यों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
समझाई दुनिया की नित्यता व अनित्यता
कॉलेज परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने अपने मंगल संबोधन में कहा कि इस दुनिया में नित्यता है, तो अनित्यता भी है। कुछ तत्त्व धु्रव और नित्य हैं, तो कुछ तत्त्व उत्पन्न और विनष्ट भी होते हैं। दुनिया में केवल नित्य ही है अथवा दुनिया में केवल अनित्य ही है, यह सही नहीं है। दुनिया में नित्यता भी है और अनित्यता भी है, इसलिए यह दुनिया नित्यानित्य है। संसार में पर्याय का परिवर्तन होता रहता है। आदमी अपने शरीर को ही देखे तो कभी शिशु अवस्था में रहने वाला शरीर किशोर, युवा तो कभी वृद्धत्व को प्राप्त हो जाता है। इसी अनुसार शारीरिक शक्ति का भी कभी विकास तो कभी ह्रास होता है। जन्म लेने वाला एक दिन अवसान को भी प्राप्त हो जाता है। शरीर अनित्य है और आत्मा नित्य है। इस अनित्य संसार में मनुष्य को नित्य को पाने अर्थात् आत्मा का कल्याण के लिए धर्म की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि आज इस विद्या संस्थान में आना हुआ है। संबंधित परिवार में धर्म के संस्कार बने रहें।
एक दिन के सुजानगढ प्रवास के बाद 11 को लाडनूं मे मंगल प्रवेश
आचार्यश्री के स्वागत में श्रीमती स्नेहलता दूगड़, श्रीमती मंजूदेवी भंसाली, श्री माणक सिंघी, श्री पारसमल डोसी, छापर चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री माणकचंद नाहटा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। भंसाली परिवार की महिलाओं तथा श्रीमती संतोष कुचेरिया ने स्वागत गीत का संगान किया। मुनि विकासकुमारजी ने पूज्यचरणों में अपने हृदयोद्गार व्यक्त कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। छापर चातुर्मास की सम्पन्नता के बाद उनका एकदिवसीय सुजानगढ़ प्रवास रहेगा और फिर वे तेरापंथ की राजधानी लाडनूं में त्रिदिवसीय प्रवास करेंगे। लाडनूं में आचार्यश्री महाश्रमणजी 11 नवम्बर को मंगल प्रवेश करेंगे।