कब थमेगा लाडनूं के नौनिहालों की अकाल मौत का सिलसिला? दो पुलियाओं के बीच हो रही मौतों ने शतक पूरा किया,
कौन लौटाएगा रोती-बिलखती मांओं को उनके लाल, आखिर कौन है इन मौतों का जिम्मेदार?
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। मौत का दूसरा नाम बने करंट बालाजी चौराहा पर आएदिन होने वाली मौतों ने अपना शतक पूरा कर लिया है, लेकिन पता नहीं कितने शतक पूरे होने पर सरकार व प्रशासन जागेगा। इस हाईवे पर रेलवे ओवर ब्रिज और डीडवाना रोड के ब्रिज के बीच का क्षेत्र डेंजर जोन बन चुका है। यहां सड़क हादसों में मरने और घायल होने वालों की संख्या बेशुमार है। इनमें नाकाबंदी के दौरान अपनी ड्यूटी पर तैनात लाडनूं पुलिस थाने का एक सिपाही भी शामिल हैं। अपनी बाईक में पेट्रोल भरवाने आने वाले युवाओं के हादसे का शिकार होने की संख्या तो बहुत ही अधिक है।
सब तक पहुंचा चुके समस्या पर वही ‘ढाक के तीन पात’
रोजमर्रा होने वाली इन दुर्घटनाओं से त्रस्त लोगों ने अब तक कितनी बार एसडीएम, जिला कलक्टर, सांसद, विधायक, नेशनल हाईवे अथॉरिटी, पीडब्ल्यूडी आदि सभी स्तरों पर ज्ञापन दे दिए, लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ भी नहीं हुआ। हां एक-दो बार अधिकारी मौका देखने जरूर आ गए, फिर वही ‘ढाक के तीन पात’। स्थिति जस की तस ही रही। भाजपा की अगुवाई में करंट बालाजी चौराहा पर कार्यकर्ताओं ने धरना-प्रदर्शन भी किया, लेकिन किसी का कोई असर नहीं हुआ। यह सब स्थिति देख कर हर व्यक्ति यह सोचने लगा है कि प्रशासन आखिर मौतों के कितने शतक और देखना चाहता है।
सुझाव-प्रस्ताव बहुत है, पर सरकार अमल करे तब
इस एक्सीडेंट जोन के कलंक को मिटाने के लिए सरकार को इस बस्ती व बाजार के बीच आए हाईवे को यहां से हटा कर बस्ती के बाहर से घुमा कर ले जाना चाहिए। यह तकमीना बने और स्वीकृत हो, तब तक आरओबी से डीडवाना रोड पुलिया तक निकलने वाली इस सड़क पर डिवाइडर बनाने की व्यवस्था कर देनी चाहिए। करंट बालाजी चौराहे और सैनिक स्कूल व चौधरी घासीराम पेट्रोल पम्प के सामने सर्किल या अंडरपास बनवाया जा सकता है। अंडरपास बनने से पूर्व तात्कालिक रूप से इन दोनों स्थानों पर ऑटोमैटिक ट्रेफिक सिग्नल लाईटें लगवाने की व्यवस्था कर देनी चाहिए। इस डेंजर जोन में एक स्थाई पुलिस चौकी की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि घायलों को सहायता पहुंचाई जाने में विलम्ब नहीं हो।
कब थमेगा यह मौतों का सिलसिला
मारवाड़ की लोकप्रिय कहावत है कि ‘रोये बिना मां भी दूध नहीं पिलाती’ की तर्ज पर सरकार के कानों पर तब तक जूं नहीं रेंगेगी, जब तक इसके लिए पुरजोर आवाज नहीं उठाई जाती। इसके लिए संगठनिक स्तर पर आवाज उठाई जानी चाहिए। इस जन-जन की मांग पर कोई राजनीति नहीं की जानी चाहिए। जनता को एकजुट होकर इसके लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए। क्या पता इस एक्सीडेंट जोन में अगली मौत का नम्बर किसका आ जाए। अब यह मौतों का सिलसिला थमना चाहिए, सरकार अपने आंख-कान खोले, इन हालातों की तह तक जाए और स्थाई समाधान दे। यह मार्ग लाडनूं के लिए सुविधा नहीं यमदूत बन चुका है। यह सब अब और नहीं।
इन सब मौतों का असली जिम्मेदार कौन?
इस डेंजर जोन ने हाल ही में एक और होनहार युवक की जान ले ली। 16 जून की रात को करीब 8 बजे सम्पत देवड़ा पुत्र सुखाराम माली की मौत रेलवे स्टेशन से बाईक पर आते समय योगेन्द्रा होटल के सामने ट्रक कंटेनर द्वारा लापरवाही व तेज गति से टक्कर मारने से हो गई। पुलिस ने सम्पत के पिता सुखाराम से रिपोर्ट लेकर मामला धारा 279, 304ए के तहत दर्ज किया है। एचसी गोपालराम तफ्तीश करेंगे। पुलिस तो अपनी कार्रवाई करेगी, लेकिन सवाल उठता है कि इस चौराहे व सड़क मार्ग ने आज तक कितने सम्पत मौत के घाट उतार डाले, उन रोती-बिलखती मांओं को उनके लाल कहां से मिलेंगे? इन मौतों के लिए वाहन चालकों को दंडित किया जाता है, लेकिन इन मौतों का असली जिम्मेदार कौन है? उपखंड प्रशासन, हाईवे अथॉरिटी, सांसद, विधायक या कोई और? अब जनता को इसका जवाब चाहिए।