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पश्चिम का व्यक्ति-केन्द्रित दर्शन है और भारतीय परम्परा में विचार-केन्द्रित दर्शन- प्रो. मिश्रा, लाडनूं में ‘आचार्य हरिभद्र सूरि का षड्दर्शन’ पर 12 दिवसीय कार्यशाला प्रारम्भ

पश्चिम का व्यक्ति-केन्द्रित दर्शन है और भारतीय परम्परा में विचार-केन्द्रित दर्शन- प्रो. मिश्रा,

लाडनूं में ‘आचार्य हरिभद्र सूरि का षड्दर्शन’ पर 12 दिवसीय कार्यशाला प्रारम्भ

 

लाडनूं। इंडियन कौंसिल आफ फिलोसोफिकल रिसर्च के सचिव प्रो. सच्चिदानन्द मिश्रा ने कहा है कि विश्व को देखने का मोड अलग-अलग होता है और इसी कारण दर्शनों की विविधता भी जरूरी है। सब दर्शन एक ही माॅडल या मानक पर नहीं हो सकते, सबके मोडल अलग होने से दर्शनों की विविधता होती है, जो जरूरी है। भारत में अलग-अलग दर्शन होने के बावजूद सब सुसंगत हैं। यहां अनेकान्त और स्याद्वाद की अवधारण ने इस विविधता के बारे में व्यवस्थित राय दी है। वे यहां जैन विश्वभारती के महाश्रमर्ण आॅिडटोरियम में ‘आचार्य हरिभद्र सूरि का षड्दर्शन’ विषय पर 12 दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने बताया कि व्यक्ति एक बार में किसी का एक भाग ही देख सकता है। कोई कितना ही प्रयास करे सबके दृष्टिकोण अलग ही होंगे। सब कोई खास दृष्टिकोण, खास विचारधारा को लेकर चलता है। परन्तु इस खास विचारधारा को परिष्कृत किया जा सकता है और परिवर्तित किया जा सकता है।

विचार-केन्द्रित हैं भारतीय दर्शन

प्रो. मिश्रा ने बताया कि पश्चिमी देशों ने भारतीय दर्शनों को खारिज किया है। उन्होंने भारतीय दर्शन को स्वतंत्र चिन्तन के बजाए धर्ममूलक बताया है। जबकि भारत में धर्म को कभी एक दृष्टि से नहीं देखा गया। यहां ईश्वर की अवधारणा के बिना भी धर्म मौजूद है। बौद्ध धर्म और जैन धर्म ऐसे ही हैं, जबकि पश्चिम में सेकुलर को और नास्तिकता को दर्शन माना गया है। भारतीय दर्शन के तीन मिथक माने गए हैं, जिनमें मोक्ष की अवधारणा भी शामिल है। बौद्ध धर्म को अद्भुत बताते हुए उन्होंने बताया कि वह आत्मा को भी नहीं मानता, जबकि परलोक और पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। उन्होंने हरिभद्र सूरि के ‘षड्दर्शन समुच्चय’ के दृष्टिकोण में दर्शनों पर लगे आरोपों का समाधान है। यहां कोई भी दर्शन किसी व्यक्ति का दर्शन नहीं है, बल्कि अनेक व्यक्तियों का दर्शन हैं। पश्चिम में व्यक्ति-केन्द्रित दर्शन है और भारतीय परम्परा में विचार-केन्द्रित दर्शन हैं। हमें अपूर्ण दृष्टि से परे रह कर समग्र दर्शन को देखना चाहिए। सबकी दृष्टि अलग-अलग होती है, लेकिन सबका समन्वय संभव है।

सभी समस्याओं का समाधान है भारतीय दर्शन में

इंडियन कौंसिल आफ फिलोसोफिकल रिसर्च (आईसीपीआर) क प्रयोजन में जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के तत्वावधान में आयोजित इस द्विसप्ताहिक कार्यशाला में विशिष्ट अतिथि जीएसटी के पूर्व चीफ कमिश्नर अनिल कुमार जैन (आईआरएस) ने कहा कि भारतीय दर्शन में निहित प्राचीन दार्शनिक मूल्यों की आवश्यकता इस युग में अधिक बढ गई है। इस दर्शन की छोटी-छोटी बातें भी जीवन में उतारे जाने के लिए उपयोगी हैं। उन्होंने जैन धर्म और भारतीय दर्शन के सिद्धांतों अहिंसा, सत्य, अनेकांत, अपरिग्रह, क्षमा, जिओ और जीने दो, शाकाहार, पर्यावरण आदि का उदाहरण प्रसतुत करते हुए उनकी वर्तमान में आवश्यकता बताई। वसुधैव कुटुम्बकम, यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता, दया धम्र का मूल है पाप मूल अभिमान आदि सूत्रों को उन्होंने भारतीय दर्शन की विशेषता बताते हुए कहा कि भारतीय दर्शन मे ंसमस्त समस्याओं का समाधान छिपा है, केवल उन्हे ंखोजने और अपनाने की जरूरत है।

जीवन से जुड़ा है भारतीय दर्शन का सम्बंध

जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कार्यशाला के शुभारम्भ समारोह की अध्यक्षता करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि भारतीय दर्शन का सम्बंध जीवन से जुड़ा है, यह जीवन-दर्शन है। उन्होंने बताया कि दार्शनकि उहापोह के बिना मस्तिष्क उर्वरक नहीं हो सकता है। दर्शन का उपयोग हमारे दैनन्दिन जीवन में होता है, लेकिन उसका दार्शनिक उपयोग नहीं होता। आज पूरे विश्व में जैन दर्शन के संयम, अल्पीकरण, अनेकान्त, उपवास आदि की चर्चा है। इन पर पूरा विश्व चलने लगा है। हमें दर्शन पर शोध को आगे बढाना चाहिए, इसमें आए अवरूद्धों को रोकना होगा। प्रो. दूगड़ ने बताया कि हरिभद्र सूरि ने षड्दर्शन समुच्चय में न्याय, वैशेषिक, सांख्य, जैमिनी आदि दर्शनों का प्रतिपादन जैन दर्शन के आधार पर किया है। कार्यक्रम का शुभारम्भ मंगलाचरण से किया गयां प्रारम्भ में जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने स्वागत वक्तव्य व कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि जहां विचारों की स्वतंत्रता होती है, वहां विचारों का विकास होता है। उन्होंने सतय को एक बताया और कहा कि दर्शन अनेक हैं, लेकिन उन सबका लक्ष्य एक ही है। इससे पूर्व अतिथियों का परिचय कार्यशाला समन्वय प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया। अंत म कोर्डीनेटर डा. समणी अमलप्रज्ञा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यशाला में भाग ले रहे देश के विभिन्न भागों से आए विद्वान, शोधार्थी एवं अन्य सहभागी इस अवसर पर मौजूद रहे।

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