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विधानसभा चुनाव स्पेशल- क्या मोड़ आएगा इस बार लाडनूं की राजनीति में? आइए जानें कैसा रूख रहेगा हवा का? कांग्रेस, माकपा व बसपा ने बिछाई बिसात, भाजपा ने पत्ते नहीं खोले, प्रत्याशी की घोषणा में किसे लाभ व किसे हानि होगी?

विधानसभा चुनाव स्पेशल-

क्या मोड़ आएगा इस बार लाडनूं की राजनीति में? आइए जानें कैसा रूख रहेगा हवा का?

कांग्रेस, माकपा व बसपा ने बिछाई बिसात, भाजपा ने पत्ते नहीं खोले, प्रत्याशी की घोषणा में किसे लाभ व किसे हानि होगी?

लाडनूं। नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में नामांकन भरे जाने का काम 30 नवम्बर से प्रारम्भ हो चुका है। लेकिन, यहां का राजनीतिक वातावरण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है, क्योंकि सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी अपना उम्मीदवार उतारे जाने को लेकर अभी तक चुप्पी साधे हुए है। भाजपा द्वारा अपना उम्मीदवार घोषित किए जाने में की जा रही देरी का लाभ किसे होगा और किसे इससे नुकसान पहुंचेगा, इस बार आम चर्चाएं हैं। अनुमान हैं कि भाजपा को ही इससे नुकसान संभव है। अब तक घोषित विभिन्न दलों के प्रत्याशियों ने अन्य दलों में सेंध लगानी शुरू कर दी है। यह सब आंकड़ों को हेराफेरी में डालने का काम करेगी।

तीन दलों के उम्मीवार घोषित

यहां से अभी तक तीन दलों ने अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं। 1. माकपा- भागीरथ यादव। 2. कांग्रेस- मुकेश भाकर। 3. बसपा- नियाज मोहम्मद खान। इनमें सबसे पहले माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतारा। जैन भवन में बैठक करके इस घोषणा की क्रियान्विति भी शुरू कर दी। इसके बाद कांग्रेस ने मुकेश भाकर को उतार कर पिछली पुनरावृति कर दी। अब बहुजन समाज पार्टी ने भी नियाज मोहम्मद खान को मैदान में उतार दिया है। हनुमान बेनिवाल की रालोपा द्वारा भी उम्मीदवार उतारे जाने की उम्मीद है, लेकिन लगता है कि वे भाजपा उम्मीदवार को देख कर निर्णय लेंगे। संभव है कि कोई भाजपा से असंतुष्ट उनके खेमे में चला जाए। आम आदमी पार्टी भी यहां से उम्मीदवार उतार सकती है। निर्दलीयों की भी इस बार लम्बी सूची बनने की संभावनाएं हैं।

आखिर किसे बनाएगी भाजपा अपना उम्मीदवार

भाजपा की स्थिति सबसे पेचीदा बनी हुई है। यहां से पहले महिला उम्मीदवार को उतारे जाने के कयास थे, लेकिन नागौर जिला क्षेत्र से तीन महिलाएं उतारी जा चुकी है, इसलिए चैथी महिला की उम्मीदें समाप्त-सी हो गई। यहां से महिला उम्मीदवारों के लिए लिए जा रहे नामों में महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष व वर्तमान वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष सुमित्रा आर्य, भाजपा की जिला उपाध्यक्ष अंजना शर्मा व मनीषा शर्मा के नाम प्रमुख थे। लाडनूं से राजपूत को उम्मीदवार बनाए जाने की संभावनाएं परबतसर से राजपूत उम्मीदवार उतारे जाने के बाद क्षीण हो चली है। यहां से करणी सिंह, गजेन्द्र सिंह, राजेन्द्र सिंह, जगदीश सिंह, आशुसिंह, कर्नल प्रताप सिंह, दशरथ सिंह आदि बहुत सारे राजपूत उम्मीदवारों के रूप में नाम चलाए जा रहे थे। मूल ओबीसी से भी यहां से उमेश पीपावत, सुमित्रा आर्य के नाम प्रस्तावित थे। ब्राह्मण दावेदारों में ओमप्रकाश बागड़ा, जगदीश प्रसाद पारीक, अंजना शर्मा आदि रहे हैं। इन सभी पर तब पानी फिर गया, जब यहां से जाट उम्मीदवार बनाए जाने की संभावनाएं चलने लगी। जाट दावेदारों में यहां से पूर्व केन्द्रीय मंत्री सीआर चैधरी, परिवहन विभाग के पूर्व आयुक्त डा. नानूराम चैयल, किसान मोर्चा के पूर्व जिलाध्यक्ष देवाराम पटेल, वरिष्ठ भाजपा नेता नाथूराम कालेरा तथा रवि पटेल के नाम प्रमुख रूप से सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि सीआर चैधरी, डा. चैयल व रवि पटेल से सारे समीकरण घुमा दिए। क्षेत्र में हर किसी की नजरें भाजपा की घोषणा की ओर लगी हुई है।

पिछले चुनावों पर एक नजर

अगर हम बात करें, पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव की तो उस समय यहां कुल 2 लाख 36 हजार 424 मतदाता थे। उस समय कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को हरा कर शानदार जीत हासिल की थी। कांग्रेस के प्रत्याशी मुकेश कुमार भाकर ने 65 हजार 041 वोट देकर जीत प्राप्त की थी। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार मनोहर सिंह तब 52 हजार 094 वोट हासिल कर पाए थे और वे 12 हजार 947 वोटों से हार गए थे। 2018 में आरएलपी से जगन्नाथ बुरड़क थे, जिन्होंने 20 हजार 063 वोट लिए। बसपा से नरेन्द्र सिंह ने 3 हजार 876 मत यानि 2.34 प्रतिशत मत हासिल किए थे। इस चुनाव में भाजपा के मनोहर सिंह, कांग्रेस के हरजीराम बुरड़क, आरएलपी के जगन्नाथ बुरड़क, बसपा के नरेन्द्र सिंह, आम आदमी पार्टी की पुष्पा कंवर, अभिनव राजस्थान पार्टी के महावीर प्रसाद पारीक तथा निर्दलीय रूप से ओमप्रकाश बागड़ा, सागरमल नाहटा, तसलीम आरिफ, सुधीर पारीक, जीवनमल गुर्जर, उम्मेद खान व कालूराम उम्मीदवार थे। कुल उम्मीदवार 14 थे।
2013 के चुनाव में मनोहर सिंह ने शानदार जीत दर्ज की थी। उन्होंने क्षेत्र के 51.08 प्रतिशत मतों को प्राप्त करते हुए 73 लाख 345 मत ले लिए थे। उनके सामने कांग्रेस के हरजीराम बुरड़क को 35.03 प्रतिशत यानि 50 हजार 294 मत ही प्राप्त हुए थे। उस समय बसपा से भंवर लाल सैनी, नेशनल पीपुल्स पार्टी से चुन्नाराम चैधरी, माकपा से बजरंग लाल चैयल, एसडी बहुजन संघर्ष दल से हरिराम मेहरड़ा, राष्ट्रीय लोकदल से इलियास खान, जागो पार्टी से बंशीलाल कुमावत, समाजवादी पार्टी से पुष्पाकंवर तथा निर्दलियों में प्रेमाराम, मूलाराम, सुधीर पारीक व मो. इलियास खींची खड़े थे। कुल उम्मीवार 13 थे।

इस बार कैसा रहेगा रूझान

इस बार यहां कुल मतदाता 2 लाख 67 हजार 81 मतदाता हैं। इनमें 1 लाख 37 हजार 100 महिलाएं, 1 लाख 29 हजार 980 पुरूष एवं 1 किन्नर मतदाता शामिल हैं। चुनावों के परिणामों को प्रभावित करने वाले बिन्दुओं में व्यक्तिगत प्रभाव, जातीय पकड़, धार्मिक रूझान, विकास के काम, अधिकतम सम्पर्क, समस्याओं का असर, कार्यकर्ताओं की सक्रियता, व्यक्तिगत नाराजगी आदि वे बिन्दु हैं, जिनका प्रभाव मतदान पर पड़ेगा और उम्मीदवार की जीत-हार का निर्णय करेंगे। इस बार ऐसा लग रहा है कि लाडनूं में भाजपा को तगड़े वोट मिल सकते हैं, लेकिन इस पूर्वाभास अनुमानों में मैदान में आने वाले उम्मीदवार उलटफेर कर सकते हैं। नामांकन प्रक्रिया पूरी होकर नामवापसी का दौर गुजर कर अंतिम प्रत्याशी सूची का प्रकाशन हो जाएगा, तभी तस्वीर सामने आ सकती है।
कांग्रेस के मुकेश भाकर की हार-जीत के पीछे उनके करवाए गए जनहित के कार्य एवं उनके जन सम्पर्क के साथ जातिगत समीकरण एवं कांग्रेस के परम्परागत वोटों का आकलन काम करेगा। वर्तमान में विधायक होने का लाभ भी उन्हें प्राप्त होगा, साथ ही इसके कारण जनता का असंतोष भी सामने आ सकता है। पंचायत समिति, नगर पालिका एवं सहकारी समितियों में उनके पक्ष के चयनित लोग उनको निश्चित ही लाभ पहुंचाएगे। इस बीच बसपा से खड़ा नियाज मोहम्मद खान भी काफी प्रभावशाली है और मुस्लिम समाज के साथ अनुसूचित जाति के वोटों को भी बटोरने का काम करने का असर कांग्रेस पर बुरी रहेगा। अब देखना यह है कि रालोपा किसे मैदान में उतारती है और आम आदमी पार्टी का रवैया कैसा रहता है। माकपा से खड़े भागीरथ यादव मल ओबीसी से जुड़े हुए होने के साथ किसान आंदोलनों की धुरी रहे हैं। किसान, मजदूर, युवा, छात्र आदि वर्ग का उनके साथ जुड़ने से वे कांग्रेस व भाजपा दोनों दलों को खासी क्षति पहुंचा सकते हैं।

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