हर व्यक्ति को आचरण और व्यवहार में प्रामाणिक होना जरूरी- प्रो त्रिपाठी,
पर्युषण पर्व के तहत अणुव्रत चेतना दिवस समारोह आयोजित

लाडनूं (kalamkala.in)। पर्वराज पर्युषण के पांचवें दिवस अणुव्रत चेतना दिवस का आयोजन सेवा केंद्र व्यवस्थापिका साध्वीश्री कार्तिक यशा के सान्निध्य में किया गया। कार्यक्रम में अणुव्रत समिति के संरक्षक प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने अणुव्रत का मूल मंत्र ‘संयम ही जीवन है’ को बताया और कहा कि व्यक्ति के प्रत्येक कार्य संयमपूर्ण होने चाहिए।असंयम व्यक्ति को अंधकार की ओर ले जाता है और संयम व्यक्ति के मार्ग को प्रशस्त करता है। संयम पूर्वक किया गया कोई भी कार्य सुखद होता है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि अणुव्रत की आचार संहिता में एक नियम है, आचरण और व्यवहार की प्रमाणिकता अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचरण और व्यवहार में प्रामाणिक होना चाहिए। समाज में व्यक्ति जिस भी किसी पद पर प्रतिष्ठित है, उसे उस पद के अनुरूप कार्य करना चाहिए। यदि प्रत्येक व्यक्ति ईमानदारी से अपने कार्य करते हैं, तो समाज में व्यवस्था बनती है और समाज विकास के पथ पर अग्रसर होता है। अतः आचरण और व्यवहार की प्रमाणिकता विकास का प्रमुख आधार है। जो व्यक्ति अपने पद के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं अर्थात भ्रष्टाचार करते हैं, तो उससे उनके व्यक्तित्व की हानि तो होती ही है समाज की व्यवस्था भी बिगड़ती है। अतः अणुव्रत आचरण और व्यवहार की कसौटी है। इस अवसर पर साध्वीश्री कार्तिक यशा ने भगवान महावीर के तीसरे भव की चर्चा करते हुए मुनि मरीच कुमार के अहंकार की चर्चा की। साध्वीश्री ने इस अवसर पर आचार्य भिक्षु और जयाचार्य के अनेक प्रसंगों पर भी प्रकाश डाला तथा अणुव्रत आंदोलन को वर्तमान की आवश्यकता बतलाया। उनके अनुसार अणुव्रतमय जीवन ही सात्विक और सार्थक जीवन है। इस अवसर पर कन्या मंडल ने अपनी गीतिका भी प्रस्तुत की।







