आधुनिक महर्षि दधीचि बने जसंवतगढ के हुलाशचंद्र जोशी,
उनका देहदान देखने लोगों की भीड़ उमड़ी, मृत्योपरांत उनकी पार्थिव देह को गाजे-बाजे के साथ सीकर के मेडिकल काॅलेज भिजवाया, उनकी देह पर होगा रिसर्च का कार्य
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। आदमी अगर चाहे तो वह मरने के बाद भी इंसानियत का भला कर सकता है। इसकी साक्षात मिसाल जसवंतगढ में गली नं. 9 के निवासी सेवानिवृत प्रधानाध्यापक हुलास चंद्र जोशी पुत्र बद्रीनारायण जोशी ने प्रस्तुत की है। उनका देहासवसान सोमवार को सुबह हो गया, वे लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने अपने जीवित रहते ही देहदान की स्वीकृति प्रदान की थी। उनकी अंतिम इच्छा की पूर्ति के लिए उनके पुत्र योगेश जोशी एवं पूरे परिवार ने सहमति प्रदान करते हुए उनकी पार्थिव देह को निकटतम मेडिकल काॅलेज सीकर को दान कर दिया है। देहदान करने का निर्णय काफी कठिन होता है। मरने के बाद व्यक्ति के परिवार वालों के लिए यह निर्णय लेना काफी ज्यादा कठिन है। गौरतलब है कि महर्षि दधीचि ने अपना शरीर इसलिए त्याग दिया था ताकि उनकी हड्डियों से धनुष बनाया जा सके, जिससे दैत्यों का संहार हो सके। देहदान का अर्थ है देह का दान, अर्थात किसी उत्तम कार्य अपना शरीर या अपना जीवन ही दे देना।
बैंड-बाजे के साथ निकली अंतिम यात्रा
यह सम्पूर्ण देह का दान किया गया है और उनके निर्जीव शरीर को कभी वापस नहीं लिया जाएगा। यहां से उनके परिवार ने आवास पर ही समस्त क्रियाकर्म करने के पश्चात उनकी अंतिम यात्रा निकाली तथा गाजे-बाजे के साथ सीकर जाने के लिए तैयार एम्बुलेंस तक शव को लाया जाकर उसमें रखवाया जाकर एम्बुलेंस को सीकर के लिए रवाना किया गया। बड़ी संख्या में लोग उनके इस आखिरी परोपकार को देखने के लिए बड़ी संख्या में उमड़े। मीडिया के लोग भी इस अंतिम विदाई को देखने के उत्सुक दिखाई दिए। सीकर मेडिकल काॅलेज में मेडिकल की पढाई करने वाले विद्यार्धियों के लिए शरीर विज्ञान के अध्ययन के लिए उनकी देह काम आएगी, उसके द्वारा वे शरीर के विभिन्न अंगों के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर पाएंगे। मेडिकल की पढ़ाई में ‘साइलेंट टीचर’ यानि मूक शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन यह मृतक की देह करती है।
देहदान का क्या महत्व है
देहदान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। जिंदा रहकर हर कोई तरह-तरह के दान करता है, लेकिन जो व्यक्ति अंगदान या देहदान करके जाता है, वह मरने के बाद भी कई लोगों को नई जिंदगी देकर जाता है। इसलिए देहदान को सबसे महान दान माना गया है। देहदान अपनी मृत्यु के बाद अपना पूरा शरीर चिकित्सा विज्ञान के लिए दान करने को कहा जाता है। देहदान से चिकित्सा अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा मिलता है। देहदान के लिए एनाटॉमिकल संस्थान से सहमति लेनी होती है, जिके लिए एक हस्तलिखित घोषणा (कोडिसिल) देनी होती है। देहदान के बाद, शरीर का अंतिम संस्कार किया जा सकता है। परिवार के अनुरोध पर, शरीर के अवशेष वापस भी किए जा सकते हैं।
देहदान और अंगदान में अंतर-
देहदान के साथ अंगदान को भी महादान की श्रेणी प्राप्त है। लेकिन, देहदान और अंगदान में अंतर है। दोनों शबद सुनने में अवश्य एक ही जैसे लगते हैं, लेकिन दोनों में काफी अंतर है। किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद उसका देह यानि शरीर दान किया जाता है। मेडिकल रिसर्च व एजुकेशन के लिए मृत व्यक्ति का शरीर दान किया जाता है। यह शरीर वहां के छात्रों के रिसर्च के काम आता है। रिसर्च में शोधकर्ता इंसानी शरीर को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। कुछ व्यक्ति मरने से पहले अपना शरीर दान करके जाते हैं। वहीं, कुछ व्यक्तियों के घरवाले उनका शरीर दान कर देते हैं।
देहदान में जहां पूरा शरीर दान किया जाता है,वहीं अंगदान में शरीर के कुछ अंग दान किए जाते हैं। अंगदान में शरीर के कुछ अंग मरने से पहले भी दान किए जा सकते हैं। अंगदान मस्तिष्क मृत्यु (ब्रेन डेथ) होने पर ही किया जा सकता है। अंगदान में शरीर के अंगों का फिर से उपयेाग किया जा सकता है, जबकि देहादान में पूरे शरीहर का उपयोग ही अनुसंधान आदि के लिए किया जाता है। अंगदान में जीवित व्यक्ति भी अपने शरीर के किसी हिस्से को डोनेट कर सकते हैं, लेकिन इसमें यह जरूरी होता है कि इस अंगदान से दानदाता का जीवन प्रभावित नहीं होवे। अंगदान में डोनेट किया जाने वाला शरीर का हिस्सा किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं होना चाहिए।