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18 विद्याओं व 64 कलाओं से सम्पन्न है भारतीय ज्ञान परम्परा- प्रो. अमिता पांडे, ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा को बढ़ावा देने में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

18 विद्याओं व 64 कलाओं से सम्पन्न है भारतीय ज्ञान परम्परा- प्रो. अमिता पांडे,

‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा को बढ़ावा देने में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

लाडनूं। जैन विश्वभारती संस्थान में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली की प्रोफेसर अमिता पांडे भारद्वाज ने कहा है कि भारतीय मूल्यों से विकसित शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विशेषता है। इसमें सभी को उर्वरतायुक्त शिक्षा प्रदान करके भारत को न्यायसंगत एवं जीवन्त ज्ञान से समाज विकास में योगदान देना शामिल है। यह फिर से एक ज्ञान-महाशक्ति के रूप में भारती की पहचान बनाने और प्राचीन विश्वगुरू की छवि को कायम करने में सहायक सिद्ध होगी। भारतीय होने का गर्व और गौरव इस नवीन शिक्षा प्रणाली से संभव हो पाएगा। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में आयोजित ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा को बढ़ावा देने में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेनिमार में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मूल भारत की व्यापक ज्ञान परम्परा है, जिसमें व्यापक दृष्टि और समष्टि प्रदर्शित होती है। भारतीय ज्ञान परम्परा में 18 विद्याएं और 64 कलाएं समाहित है, जो सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिता में परिवर्तित करती हैं। वेद हमारे प्राचीन ग्रंथ हैं। उनका ज्ञान उपवेद और वेदांगों में आया है। इनमें प्रत्येक विषय का विशद विवेचन उपलब्ध हैं, जो भारतीय ज्ञान परम्परा की समग्रता को बताता है। ऐसा कोई विषय नहीं है, जो हमारे ज्ञान परम्परा में नहीं आया है।
सकारात्मक सोच, समर्पण भाव व प्रतिबद्धता से होता है अध्यापन कार्य
प्रो. पांडे ने कहा कि शिक्षा को मात्रा से नहीं गुणात्मकता से लिया जाना चाहिए। शिक्षा उत्तरदायी होनी चाहिए। केवल ज्ञान देना हमारी परम्परा नहीं रही है, बल्कि आत्म-विकास और समग्र विकास का उद्देश्य रहा है। समग्र शिक्षा के साथ बहुविषयक शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा है। हमारे यहां जीवनपर्यन्त शिक्षा का महत्व रहा है। छात्र में सृजनात्मक शक्तियों का विकास, मानसिक शक्तियों का विकास, भावात्मक विकास, सामाजिक व नैतिक विकास किया जाना शिक्षा का उद्देश्य रहता है। उन्होंने अध्यापन शिक्षा के सम्बंध में कहा कि अध्यापक तैयार करना सभी शिक्षा से अलग होता है। अध्यापन शिक्षा शिक्षक बनाने की प्रक्रिया पर आधारित है, जिसमें विद्यालयी अध्यापक तैयार करने पर जोर दिया जाता है। शिक्षा नीति में बहुविषयक शिक्षा पर जोर दिया गया है। विद्यालयी शिक्षा में सभी विषय समाहित करने होंगे। अध्यापन शिक्षा के लिए विद्यालयी सम्बद्धता जरूरी है, ताकि शिक्षा केवल सैद्धांतिक नहीं रह कर व्यावहारिक भी बन पाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा में समग्र ज्ञान देने के साथ मानवीय मूल्य होने आवश्यक है। अध्यापक को एक सकारात्मक सोच के साथ समर्पण भाव से प्रतिबद्ध होकर ईमानदारी, समझदारी व जिम्मेदारी से अध्यापन कार्य करवाना होता है।
लौकिक के साथ पारलौकिक ज्ञान भी है भारतीय संस्कृति में
कार्यक्रम के प्रारम्भ में वक्ता परिचय के बाद विषय वस्तु पर प्रकाश डालते हुए शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष व रजिस्ट्रार प्रो. बीएल जैन ने कहा कि भारतीय ज्ञान की जो परम्परा रही है, उसे आज समूचे विश्व में विभिन्न देशों ने अपनाई है। उन्होने हमारी ही बौद्धिक सम्पदा को लेकर अपना वर्चस्व बढाया है। हमारी शिक्षा और संस्कृति लौकिक व पारलौकिक दोनों बात करती है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति केवल लौकिक बात करती है। भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता के विकास हमारी सांस्कृतिक पहचान है। कार्यक्रम का संचालन डा. सरोज राय ने किया। कार्यक्रम में डा. आभा सिंह, प्रमोद ओला, अभिषेक शर्मा आदि सभी संकाय सदस्य एवं छात्राध्यापिकाओं के अलावा देश भर के अनेक विद्वान भी सम्मिलित हुए।
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Author: kalamkala

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