चित को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है संगीत- प्रो. शास्त्री,
पांच दिवसीय सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का शुभारम्भ
लाडनूं। जैन विश्वभारती संस्थान में आयोजित पांच दिवसीय सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का शुभारम्भ यहां समारोह पूर्वक किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि प्रो. नलिन के. शास्त्री ने रंगीले राजस्थान का जिक्र करते हुए कहा कि रंग हमारे मन में होता है। राजस्थान में भक्ति का अप्रतिम प्रवाह भक्त मीरा के स्वरों से गूंजा, शौर्य की गाथाएं यहां कण-कण में व्याप्त है, उनकी बिरदावलियां गाने वाले इस धरती को संगीत देते हैं। उन्होंने कहा कि संगीत चित को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है। सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं को उन्होंने निर्मल आनन्द को चित में संग्रहित करने का उत्सव बताया और कहा कि यह उत्सव वे स्पन्दन के रूप में देखते हैं। अध्यक्षता करते हुए शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा एकांगी होती है। सर्वांगीण शिक्षा ज्ञानात्मक, भावात्मक व क्रियात्मक होनी चाहिए। शिक्षा के सााि विभिन्न कार्यक्रम भी आवश्यक हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति में वंदना, नृत्य आदि को जन मानस में रचे-बसे बताते हुए कहा कि कोई भी तीज-त्योंहार हो अथवा विवाह आदि समारोह, उनमें जब तक नृत्य एवं गीत नहीं होते, तब तक अधूरापन लगता है। संगीत को उन्होंने चिंताओं एवं तनाव से मुक्त करने वाला बताया। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि प्रो. रेखा तिवाड़ी ने जीवन में रंग, उमंग और उतसाह को जरूरी बताया। अंत में डा. लिपि जैन ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में संभी संकायों के सदस्य, विद्यार्थी आदि उपस्थित रहे। सांस्कृतिक सचिव डा. अमिता जैन ने बताया कि सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के तहत प्रथम दिवस एकल लोकगीत, रंगोली और मेहंदी प्रतियोगिता के अलावा अनुपयोगी सामान का उपयोग करने की प्रतियोगिता भी आयोजित की गई, जिनमें बड़ी संख्या में छात्राओं ने हिस्सा लिया।