ज्ञान की प्राप्ति के लिए कोई उम्र निर्धारित नहीं होती- राज्यपाल महाराष्ट्र रमेश बैस,
जैविभा विश्वविद्यालय का 14वां दीक्षांत समारोह वाशी में आयोजित,
प्रख्यात अर्थशास्त्री केवी कामथ व वेद विद्या के मनीषी डा. दयानन्द भार्गव को मानद उपाधि सहित 24 पीएचडी, 10 को गोल्ड मैडल 3567 को अन्य डिग्रियां वितरित
जगदीश यायावर। लाडनूं/मुम्बई (kalamkala.in)। जैन विश्वभारती संस्थान मानित विश्वविद्यालय का 14वां दीक्षांत समारोह अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में महाराष्ट्र के वाशी में आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि जैन विश्वभारती संस्थान वैश्विक स्तर पर मानवता के लिए, सार्वभौमिक व्यक्ति के लिए नैतिकता के जागरण के लिए अहिंसा, शांति, के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहा है। वर्तमान में विश्वयुद्ध की परिस्थितियों, आर्थिक विषमताओं, विस्थापन की स्थिति आदि के लिए नैतिकता और शांति की स्थापना महत्वपूर्ण हो गई है। आंतरिक शांति, राष्ट्र शांति और प्रकृति की शांति इन तीनों के लिए प्रयास जरूरी है। भारत शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की बात को प्रसारित कर रहा है। आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ व आचार्य महाश्रमण के विचारों से ही हम नई पीढी को चरित्रवान बना पाएंगे। उन्होंने दीक्षांत समारोह के सम्बंध में कहा कि दीक्षा का अंत हो सकता है, लेकिन शिक्षा का कोई अंत नहीं होता। सीखने के लिए ज्ञानप्राप्ति के लिए कोई उम्र नहीं होती। ज्ञान किसी भी उम्र में प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र द्वारा वैकल्कि चिकित्सा पद्धतियों के विकास की ओर दिए जा रहे ध्यान की प्रशंसा की और कहा कि नई शिक्षा नीति से काफी परिवर्तन आया है। आज शिक्षा नैतिकता के लिए, चरित्र निर्माण और व्यक्ति निर्माण के लिए है। आचार्यों के निर्देशन में ही भारत को विश्वगुरू बनाया जा सकेगा।
ज्ञान के साथ शांति, अहिंसा व नैतिकता के मूल्यों का विकास महत्वपूर्ण
अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण न समारोह में सभी दीक्षार्थियों को ‘शिखापदं’ का उच्चारण करवाया और अपने आशीर्वचन में कहा कि जीवन में ज्ञान का महत्व बहुत अधिक होता है। शास्त्रों में, आगमों में ज्ञान के सम्बंध में बहुत बातें भरी पड़ी है। उन्होंने अहंकार, गुस्सा, प्रमाद, रोग, आलस्य को ज्ञान प्राप्ति में बाधक बताया और इनसे बचने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। आचार्यश्री विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार दिए जाने की भी जरूरत बताई और कहा कि ज्ञान और आचार दोनों जरूरी होते हैं। ज्ञान का आदान-प्रदान ही सरस्वती की साधना होती है। उन्होंने आचार्य तुलसी को शिक्षा देने और अध्यापन करने वाले बताते हुए कहा कि अणुव्रतों के माध्यम से उन्होंने जीवन में अच्छा आदमी बनने के उपाय बताए। महाश्रमण ने अणुव्रत गीत के महत्वपूर्ण अंशों का गान करते हुए विद्यार्थी के लिए उनकी आवश्यकता बताई और कहा कि विद्यार्थी में ज्ञान प्राप्ति के लिए निष्ठा और चरित्र सबसे ज्यादा जरूरी है। ज्ञान प्राप्ति के प्रति जागरूक होने के साथ ही शांति, अहिंसा व नैतिकता के मूल्यों का विकास भी होना महत्वपूर्ण है। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ के प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान को विद्यार्थी के बोथ्द्धक, शरीरिक व मानसिक विकास को विद्यार्थी विकास के लिए जरूरी बताया।
आचार्य तुलसी ने मूल्य आधारित शिक्षा की नींव रखी
समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति व केन्द्र सरकार के विधि एवं न्याय तथा संस्कृति व संसदीय मामलात के मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने संकल्प सूत्र का सामुहिक पाठ करवाते हुए आचार्य तुलसी की दूरदृष्टि की सराहना करते हुए कहा कि 1991 में ही उन्होंने सोच लिया था कि मूल्य आधारित शिक्षा नहीं मिली तो तो श्रेष्ठ मनुष्य का निर्माण नहीं कर पाएंगे। अब नई शिक्षा नीति में भी मूल्य आधारित शिक्षा पर बल दिया गया है। नैतिकता होना राष्ट्र की आवश्यकता है। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने स्वागत वक्तव्य एवं संस्थान परिचय प्रस्तुत करते हुए संस्थान के प्रारम्भ से लेकर अब तक के सभी कुलपतियों का स्मरण किया व उनकी उपलब्धियों के बारे में जानकारी दी एवं संस्थान की उपलब्धियों के बारे में बताया। इस अवसर पर डी-लिट. की मानद उपाधि प्राप्त करने वाले विद्धान प्रख्यात अर्थशास्त्री केवी कामथ व वेद एवं जैन विद्या के विश्रुत मनीषी प्रो. दयानंद भार्गव ने भी समारोह को सम्बोधित किया। देश के इन प्रख्यात विद्वानों को प्रदान की गई मानद उपाधि का वाचन प्रो. नलिन के. शास्त्री ने किया। इस दीक्षांत समारोह में कुल 24 शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधि 10 को गोल्ड मैडल व विशेष योग्यता प्रमाण पत्र प्रदान किए गए तथा 3567 विद्यार्थियों को स्नातक व अधिस्नातक की डिग्रियां प्रदान की गई। इनमें मुनिश्री आलोक कुमार, साध्वी रूचिदर्शनाश्री, साध्वी श्रुतिदर्शनाश्री भी शामिल हैं। समारोह में विद्यार्थियों व प्रमुख लोगों के साथ साध्वी प्रमुखा, मुख्य मुनि महावीर मुनि, मुनिश्री कुमार श्रमण, विशिष्ट अतिथि विधायक गणेश नायक, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लूंकड़ आदि भी उपस्थित रहे। अंत में आभार ज्ञापन व समारोह का संचालन कुलसचिव प्रो. बीएल जैन ने किया।