श्रीमद भागवत कथा का तृतीय दिवस सती चरित्र प्रसंग: बिना आमंत्रण नहीं जाना चाहिए कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरी पारा

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श्रीमद भागवत कथा का तृतीय दिवस

सती चरित्र प्रसंग: बिना आमंत्रण नहीं जाना चाहिए

कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरी पारा

मूण्डवा ( लाडमोहम्मद खोखर )। मारवाड़ मूंडवा में चल रही श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस पर कथा प्रवक्ता श्री करुणामूर्ति धाम भादवासी (नागौर) के मुख्य अधिष्ठाता त्यागी संत हेतमराम महाराज ने सती चरित्र के प्रसंग में कहा कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे हैं वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्मदाता पिता का ही घर क्यों न हो। कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा। उन्होंने कहा कि लोग आजकल टीवी में सत्संग सुनते हैं लेकिन सत्संग मैं कोई ना कोई घर में बाधाएं आती हैं, लेकिन कथा में शहर या गांव में कहीं भी कथा हो वहां आकर एकाग्र चित्त से कथा का श्रवण करने से विशेष लाभ होता है जीवन में परिवर्तन आ जाता है। त्यागी संत हेतमराम महाराज ने ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया। जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्ना करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए। क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है, उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। त्यागी संत ने अजामिल उपाख्यान का वर्णन करते हुए नाम की महिमा का महत्व बताते हुए कहा कि कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरी पारा। कलयुग में केवल हरि नाम संकीर्तन ही भवसागर से पार करने वाली वह नैया है, जिस पर बैठकर पापी अजामिल जैसा मनुष्य भी भव से पार हो गया। सतयुग में यज्ञ, द्वापर में दान, त्रेता में तप की बड़ी महिमा थी। लेकिन इन सब में कलयुग की महिमा को बड़ा ही महान बताया गया है कि केवल भगवान नाम से ही इस कलिकाल में ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। ‘राम नाम की गाडुली अमरापुर जाए बैठ जाओ गाड़ी में।’

त्यागी संत ने कहा कि भक्त प्रहलाद जैसा भक्त आज तक कोई नहीं हुआ। उन्होंने अपनी अगाध भक्ति से खम्भे में भी भगवान नृसिंह को प्रकट कर अपनी नि:स्वार्थ भक्ति का अनुपम परिचय दिया। हमें भी इसी तरह नि:स्वार्थ एवं निष्काम भक्ति में लीन रहते हुए समाज सेवा के कार्यों में अग्रणी भुमिका निभानी चाहिये। त्यागी संत नेमीराम महाराज ने कहा कि भगवत भजन के बिना जीव की मुक्ति संभव नहीं है। सत्य केवल हरि भजन है। जगत स्वप्न की तरह है और अजामिल जैसा पापी व्यक्ति पुत्र के बहाने नारायण नाम लेकर भवसागर पार हो गया। कलियुग में भगवान का नाम ही कल्याण का आधार है। भक्त प्रहलाद ने दृढ़ निष्ठा से भगवान की भक्ति की और महा नास्तिक दैत्यों का विरोध किया। अकेले प्रहलाद ने भक्ति के प्रभाव से पिता हिरण्यकश्यपु को भगवान के हाथों कल्याण करा दिया। भगवान के भजन से हम सबका कल्याण हो जाएगा।
जिस संस्था में जिस घर में भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है, और जो लोग कथा श्रवण करते रहते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। त्यागी संत ने सुखदेव जी के जन्म प्रसंग में कहा कि जिस व्यक्ति को भक्ति धन मिल जाता है, उसके सामने वह सभी धन दौलत बेकार साबित हो जाते है। कृष्ण भक्त को कभी भी पृथ्वी पर कष्ट नहीं होता है। जिनको काम प्रिय है, वे प्रभु की कथा को नहीं सुन सकते, मगर जिनको श्याम प्रिय हैं, वे अपना सारा काम छोड़कर प्रभु की कथा सुनने को पहुंचते जाते हैं।त्यागी संत ने बताया कि परीक्षित को भवसागर से पार लगाने के लिए अब भगवान शुकदेव के रूप में प्रकट हो गए और श्रीमद्भागवत कथा सुनाकर परीक्षित को अपने चरणों में स्थान प्रदान किया। त्यागी संत ने कौरव पांडव प्रसंग में कहा कि जब हमें पता है कि हमारी मृत्यु निश्चित है, खाली हाथ आये थे, और खाली हाथ ही जाएंगे, तो क्यों न हम अपने जीवन को धर्म के मार्ग पर लगाएं। जिसे हमारा यह मानव जीवन सफल हो जाए। त्यागी संत ने विदुर प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान प्रेम के भूखे हैं। भगवान कृष्ण दुर्योधन का छप्पन भोग त्याग कर विदुर के घर में जाकर रुके। केला का छिलका खाकर तृप्त हुए। भगवान भाव के भूखे हैं। भाव से जो भजता है उसका बेड़ा पार है।
इस अवसर पर रमाकांत शर्मा, श्यामसुंदर कंदोई, रामकिशोर सारड़ा, जगदीश राठी, ओमप्रकाश बंग (पटवारी), वासुदेव माली, महेंद्र तिवारी, कमल शर्मा, दिनेश प्रजापत, हरिओम तिवारी, गिरिराज, पवन भट्टड़, श्रीगोपाल सारड़ा, सुरेश राठी, अभिषेक सारड़ा, निर्मल सारड़ा, अभिषेक राठी, पवन भट्टड़, रामानुज बंग, रामकिशोर भट्टड़, प्रकाश कंदोई, महेंद्र तिवारी, कमल शर्मा, गोविंद बाहेती, दीपक कदोई, कमल बंग, नवरत्न बंग, महेश पाराशर, भंवर लाल बंग, पवन भट्टड़, अटल, मधु भट्टड़, रामकिशोर भट्टड़, प्रकाश कंदोई, शिवदयाल बंग, गोविंद पाराशर, नटवर भट्टड़ व सैकडों श्रद्धालु गण उपस्थित रहे।

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Author: kalamkala

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