गहरे पानी पैठ- 3-
क्या है लाडनूं आर्य समाज के चुनावों की असलियत? पर्दे के पीछे छिपी है घिनौनी साजिश,
आर्य समाज के अवैधानिक रूप से सदस्य बनाए जाने की स्थिति आई सामने, तो कैसे हुए चुनाव वैध? आई तकरार सामने,
अध्यक्ष ने अवैध सदस्यों की जानकारी मिलते ही निरस्त कर दी थी साधारण सभा, तो निरस्त सभा में चुनाव कराना सरासर अवैध
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। स्थानीय आर्य समाज संस्थान के चुनावों को लेकर उसकी संवैधानिकता पर भी सवाल उठने लगे हैं। रजिस्टर्ड संस्थान में भी आपाधापी के हालात होने से दो गुट बन चुके हैं। एक पक्ष अपने चुनाव सही बताता है, तो दूसरा पक्ष चुनाव को सरासर ग़लत ठहरा रहा है। एक पक्ष का कहना है कि जब संस्थान की साधारण सभा को ही अध्यक्ष ने निरस्त कर दिया था, तो चुनाव अधिकारी ने मनमर्जी से साधारण सभा की बैठक कैसे बुला ली और चुनाव प्रक्रिया कैसे करवा डाली? इस बारे में जानकारी मिली है कि आर्य समाज संस्थान (रजिस्ट्रेशन क्रमांक- 297/नागौर/20) के अध्यक्ष ओमदास आर्य ने दिनांक 20/7/2024 को थानाधिकारी पुलिस थाना लाडनूं को एक पत्र देकर आर्य समाज के वार्षिक चुनाव के सम्बन्ध में बताया था कि आर्य समाज लाडनूं में दिनांक 21-7-2024 को चुनाव मुकर्रर किये गये थे, मगर आर्य समाज के कुछ सदस्यों द्वारा गलत व असंवैधानिक तरीके से चुनाव में मतदान करने के लिए मतदाता सूचि तैयार कर रहे हैं। यह सब अध्यक्ष के संज्ञान में आने पर दिनांक 19-4-2024 को आगामी आदेश तक चुनाव निरस्त करने की घोषणा कर दी गई थी। इसमें आइंदा निकट भविष्य में कार्यकारिणी की मीटिंग करवाई जाकर आर्य समाज के द्वि-वार्षिक चुनाव की तारीख तय की जाना तय था। अगर फिर भी दिनांक 21-7-2024 को कोई भी जबरदस्ती चुनाव करने की कोशिश की जाकर शान्ति व्यवस्था भंग करने की प्रबल सम्भावना है। इस प्रकार पत्र में शान्ति व्यवस्था बनाने के लिए उचित व्यवस्था कराने के लिए मांग की गई थी।
अध्यक्ष द्वारा साधारण सभा निरस्त किए जाने के बावजूद कर ली सभा
इस प्रकार आर्य समाज संस्थान की साधारण सभा की 21 जुलाई को घोषित बैठक को अध्यक्ष द्वारा स्थगित किए जाने के बावजूद साधारण सभा बुलाई गई और चुनाव करवाए गए, बताए गए हैं। यह पक्ष इसी कारण इन चुनावों को अवैध मानता है। इसमें मनमाने ढंग से अनुचित सदस्यों की सूचि बनाने के आरोप भी जों अध्यक्ष द्वारा लगाए गए हैं, वे काफी गंभीर हैं। और फिर निरस्त की जा चुकी बैठक को मनमर्जी से बुला लेना भी गंभीर माना जा सकता हैं। इसका अध्यक्ष द्वारा बैठक के दौरान काफी विरोध भी किया गया, लेकिन उनकी परवाह और सुनवाई किए बिना ही सर्वसम्मति से तीन पदाधिकारियों के चुने जाने की घोषणा जारी कर दी गई।
लालायित हैं नागौर रजिस्ट्रार की लगवाने छाप
इधर दूसरा पक्ष अपने चुनाव को वैधानिक बनाने के प्रयास के लिए भागदौड़ करने में जुटा हुआ है। ये लोग रजिस्ट्रार संस्थाएं नागौर के कार्यालय से अप्रूव्ड करवाना चाहते हैं। क्योंकि यह संस्था वहीं से पंजीकृत है। इन्हें कार्यकारिणी के चुनावों कै ओनलाइन अपडेट करना होगा, लेकिन एक पक्ष इसका विरोध कर रहा है और यह अवैध अपडेशन नहीं होने दे रहा है। कुल मिलाकर संस्थान के लोग ही एक-दूसरे के खिलाफ पुरजोर रूप से उठ खड़े हुए हैं, अब देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-अध्यक्षों में है?