लाडनूं का तो भगवान ही मालिक है- 2-
लाडनूं के स्टेडियम और रेलवे क्रासिंग फाटक के बीच मुख्य सड़क पर पानी की झील बनने से आवागमन हुआ बंद,
सारे अधिकारी, जन प्रतिनिधि गण देख कर निकलते हैं, पर समाधान की नहीं सोचते, शिकायतों को भी कर देते हैं दरकिनार
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। यह इस शहर का दुर्भाग्य ही है कि जिधर नजर उठाओ, सरकारी विभागों की लापरवाही, अनदेखी, उपेक्षा और सांठ-गांठ के नजारे नजर आते हैं। बस स्टेंड के बुरे हाल से सभी वाकिफ और भुगतभोगी हैं ही, वैसी ही एक समस्या यहां लाडनूं के स्टेडियम और रेलवे फाटक के सामने दोनों के बीच के सड़क पर दो दिनों से तालाब बना हुआ है। इस कारण आवागमन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। आने-जाने वाले वाहन पानी में फंस जाते हैं और पैदल तो निकलना ही दूभर हो चुका है। शहर के इस डा. गुहराय स्टेडियम में नगर पालिका के वाहनों आटो टीपर्स, फायर ब्रिगेड वाहन, गटर खाली करने वाली मशीन आदि की पार्किंग यहीं रहती है। नगर पालिका के अधिशाषी अधिकारी का आवास भी यहीं स्टेडियम में है। रेलवे स्टेशन और समस्त सरकारी विभागों यथा पुलिस थाना, तहसील, एसडीएम आफिस, पंचायत समिति, पीडब्ल्यूडी आफिस आदि तक आने-जाने के रास्ते में यह जल भराव अवरोध बना हुआ है। इसी प्रकार जसवंतगढ़, सुजानगढ़, खानपुर, भियाणी, फाटक पार की बस्तियों आदि का आवागमन भी बाधित हुआ है। अधिकारियों और पुलिस की गाड़ी को तो रोज इसी मार्ग से गुजरना होता है, उनको खुद को परेशानी उठानी पड़ती है।
न नाले की बराबर सफाई होती और न सड़क का लेबल सही किया जाता
इतना सब होने के बावजूद इस समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं किया जा रहा है। पहले भी यह समस्या पैदा हुई थी, लोगों ने तब काफी हो-हल्ला मचाया था। नगर पालिका ने उस समय वहां से गुजर रहे नाले की सफाई करवा कर समस्या का हल करवाया था, लेकिन समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं करवाया जा रहा है। यहां सड़क का लेबल बहुत नीचा है और एक झील की तरह बनी हुई है। इसमें नाले के अवरुद्ध होते ही पानी का भराव हो जाता है और वह पानी कई-कई दिनों तक भरा रहता है। नाले की नियमित सफाई के अभाव में यह स्थिति पैदा हो रही है। इस हालत को लेकर लोगों ने जन सुनवाई और राजस्थान सम्पर्क पोर्टल सब जगह गुहार लगाई, लेकिन जिम्मेदाराना रवैया किसी भी स्तर पर नहीं है।
आंख्यां मींच अंधारो कियो
पता नहीं क्यों यहां के विधायक, पालिकाध्यक्ष, पार्षदगण और अन्य जन प्रतिनिधि भी अधिकारियों से भी गई-गुजरी भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। किसी को जनता की परेशानियों से कोई लेना-देना नजर नहीं आता। अधिकारी गण भी इस स्थिति से रूबरू होकर भी आंखें मूंद कर अंधकार कर लेते हैं। आखिर यह सब कब तक चलेगा? क्या किसी की बुद्धि फिरेगी और वह समस्या का संज्ञान लेकर कोई दायित्वपूर्ण कदम उठाएगा? पता नहीं कब वो दिन आएगा?