धर्म की सूक्ष्म व्याख्या कर पुनर्परिभाषित किया- साध्वी कल्पलता,
तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का 297वां जन्मदिवस ‘बोधि दिवस’ के रूप में मनाया
लाडनूं (आलोक खटेड़ पत्रकार)। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में शासन गौरव साध्वी कल्पलता एवं वृद्ध साध्वी सेवा केंद्र व्यवस्थापिका साध्वी लक्ष्यप्रभा तेरापंथ धर्मसंघ के आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु का 297वां जन्म दिवस बोधि दिवस के रूप में आयोजित किया गया।
उम्र से नहीं, व्यक्ति कर्म-पुरुषार्थ और पराक्रम से बनता है
ऋषम द्वार सभागार में आयोजित समारोह में साध्वी कल्पलता ने कहा कि इतिहास किसी व्यक्ति की उम्र से नहीं बनता, बल्कि उसके कर्म, पुरुषार्थ और पराक्रम से बनता है। यह उन जीए गए क्षणों का अक्षयकोश होता है, जो समाज के लिए प्रेरणा का दीप बनता है और तेजस्विता की सशक्त दास्तान बनता है। आचार्य भिक्षु के जीवनकाल में संप्रदायों में शिथिलता अपने चरम पर थी और चारित्रिक शुद्धि के प्रति अनास्था पनपने लगी थी। ऐसे विकट समय में उन्होंने धर्म की सूक्ष्म व्याख्या कर उसे पुनर्परिभाषित किया और आचार शुद्धि के साथ समझौता करने से इंकार कर दिया। उन्होंने सत्य, अहिंसा, अभय व वीतरागता की सही व्याख्या कर इन्हें धर्म का मूल बताया।
आस्था की पुनर्वापसी का पथ प्रशस्त किया
सेवाकेंद्र व्यवस्थापिका साध्वी लक्ष्यप्रभा ने कहा कि जब भीखण जी अपनी मां दीपांजी की कोख में गर्भस्थ हुए, तब उनकी मां ने सिंह का स्वप्न देखा था। जैन परंपरा में सिंह के स्वप्न को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि जो माता गर्भावस्था में सिंह का स्वप्न देखती है, उसकी कोख से महापुरुष का अवतरण होता है। मारवाड़ क्षेत्र के कंटालिया गांव में आषाढ शुक्ला 13 विक्रम संवत 1783 के दिन उस महान क्रांतिकारी संत का जन्म हुआ। आचार्य भिक्षु ने अद्भुत धर्मकांति का सूत्रपात कर लोगों की धर्म के प्रति लुप्त हो रही आस्था की पुनर्वापसी का पथ प्रशस्त किया।
ये सब रहे उपस्थित
सभा में साध्वी स्वस्तिक प्रभा, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा सुमन गोलछा, पूर्व अध्यक्षा प्रीति घोसल, तेरापंथी सभा के मंत्री महेंद्र बाफना, डॉ. सुशीला बाफना आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के प्रारंभ में तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संयोजन आलोक खटेड़ ने किया।